Wednesday, November 20, 2013


देश में हर साल नोटों को काफी अधिक संख्या में बर्बाद किया जा रहा है। भारत सरकार को प्रत्येक वर्ष लगभग 2 हजार करोड़ रुपयों का नुकसान हो रहा है।

हर साल देश में नोटों की संख्या जरूरतों के हिसाब से बरकरार रखने के लिए आरबीआई नए नोटों को छापती रहती है। मगर प्रत्येक साल नोटों की संख्या घट जाती है, जिससे सरकार को करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ता है।

भारत में नोटों को गंदा करने की लोगों को काफी गलत आदत लगी हुई है। लोग नोटो पर नाम, आकड़ा या कोई भी निशान बना देते है और कई बार तो इसको बुरी तरह रंग देते हैं। इन हरकतों से कई बार नोटों को पहचानना भी मुश्किल हो जाता है।

कई देशों में इस तरह के हरकतों पर प्रतिबंध लगा हुआ है और बैंक गंदे नोटों को लेने से साफ मना कर देते हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में नोटों पर कुछ भी लिखने या फिर गंदा करने पर प्रतिबंध लगा हुआ है। वहां के नागरिक भी इस जिम्मेदारी को ठीक तरह से निभाते हैं इसलिए डॉलर या पौंड नोटों पर किसी भी तरह की गंदगी देखने को नहीं मिलती है।

आरबीआई ने भारतीय मुद्रा को साफ-सुथरा बनाए रखने के लिए 7 नवंबर 2001 को क्लीन नोट पॉलिसी लागू की थी। मगर इस कानून का कड़ाई से पालन न होने की वजह से नोटों की बर्बादी लगातार होती चली आ रही है।

अब यह नियम भारत में भी लागू होने जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक के नए मानकों के अनुसार एक जनवरी 2014 से नोट पर कुछ भी लिखा पाया गया तो इसे रद्दी माना जाएगा। इन नोटों को न ही बाजार में चलाया जा सकेगा और न ही इसे बैंक में स्वीकार किया जाएगा। ऐसे नोटों की कोई कीमत नहीं रह जाएगी।

इस नुकसान पर लगाम लगाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने सख्त कदम उठाने का फैसला किया है। नए मानकों को बनाते हुए आरबीआई ने सभी बड़े-छोटे बैकों को आदेश दिया है कि वो इसका सख्ती से पालन करें।

आरबीआई ने सभी बैंको से ये भी सुनिश्चित करने को कहा है की सारे गंदे नोट साल के अंत तक अलग कर दिए जाएं। एक जनवरी 2014 से बैंकों से न तो गंदे नोट जारी किए जाएं और न ही जमा किए जाएं।

इस नियम के सख्ती से पालन होने पर लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि बाजार में लिखे हुए और गंदे नोटों की संख्या बहुत ज्यादा है।

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